बाधित विकास, एनीमिया, थकान, जोड़ों तथा छाती में दर्द की शिकायत मानव जीवन के लिए जरूरी डीएनए की संरचना में स्थाई बदलाव की वजह से होने वाली अनुवांशिक बीमारी सिकलसेल एनीमिया की वजह से भी हो सकती है और मरीज को कभी कभी जीवनरक्षक प्रणाली पर रखने की नौबत आ जाती है। सिकलसेल एनीमिया के मरीजों की लाल रक्त कोशिकाओं का आकार हंसिया नुमा हो जाता है और इनका हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन के प्रति अत्यंत संवेदनशील हो जाता है। ऐसी कोशिकाएं अक्सर टूट कर रक्त वाहिनियों में एकत्र हो सकती हैं या फेफड़े में फंस कर जानलेवा स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।

माता-पिता सिकलसेल एनीमिया से पीड़ित तो संतान भी इससे पीड़ित होगी

होम्योपैथी चिकित्सक और केंद्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डॉ. एके द्विवेदी के अनुसार अगर माता-पिता दोनों को सिकलसेल एनीमिया की बीमारी है तो संतान इस बीमारी से पीडि़त होगी। अगर दोनों में से एक को यह समस्या है तो संतान में इस बीमारी के होने की आशंका 50 फीसदी होती है। डीएनए की संरचना में होने वाले स्थायी बदलाव के फलस्वरूप हुआ जीन म्यूटेशन अनुवांशिकी आधारित बीमारी सिकलसेल का मुख्य कारण है और कुछ पीढियों में इसके लक्षण दबे रहने के बाद अचानक उभर सकते हैं।

रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले दो जीन में से अगर एक जीन इस बीमारी से प्रभावित होता है तो उसे ट्रेट कहा जाता है। ऐसे लोगों में एक जीन सामान्य हीमोग्लोबिन का और दूसरा जीन सिकल सेल हीमोग्लोबिन का होता है तथा शरीर में सामान्य हीमोग्लोबिन और सिकलसेल हीमोग्लोबिन दोनों बनते हैं। अक्सर इन लोगों में सिकलसेल के लक्षण नहीं उभरते लेकिन अनुवांशिक आधार पर यह बीमारी उनकी संतान में पहुंच जाती है।

सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र 120 दिन लेकिन सिकल सेल 15 से 20 दिन ही जीवित रहती है

सिकल सेल हीमोग्लोबिन वाली लाल रक्त कोशिकाएं बहुत जल्दी टूट जाती हैं और अंगों तथा रक्त नलिकाओं में इनका जमाव होने की वजह से खून का थक्का बन सकता है। टूटी हुई ये कोशिकाएं अगर रक्त प्रवाह में चली जाती हैं तो पित्त में पाए जाने वाले तत्व बिलिरूबिन का स्तर बढ़ सकता है और पीलिया हो सकता है। पित्त के तत्वों में वद्धि के कारण पित्ताशय में पथरी यानी कोलियोलिथिएसिस की समस्या तथा प्लीहा और जिगर के आकार में वृद्धि भी हो सकती है। आम तौर पर सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र 120 दिन होती है लेकिन सिकल सेल 15 से 20 दिन ही जीवित रहती है। यही वजह है कि इस बीमारी के मरीजों को समय समय पर रक्त चढाना पड़ता है।

By Admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *